पांच शिक्षिकाएं जो शिक्षा के क्षेत्र में दे रही हैं असीम योगदान, जानकर आप भी करेंगे सलाम
भारत में 5 सितंबर का दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश के शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। इस दिन की शुरुआत भी एक शिक्षक के सम्मान में हुई, जिनका नाम डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन है। उनके जन्मदिन पर शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा। वहीं महिला शिक्षकों का जिक्र होते ही सबसे पहले ज्योतिबा बाई फुले का नाम याद आता है।
भारत के इन सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों का नाम इतिहास में दर्ज है लेकिन वर्तमान में भी कई महिला शिक्षिकाएं हैं जो बच्चों की पढ़ाई के लिए सराहनीय कार्य कर रही हैं। देश में अभी भी बच्चों के लिए शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं, किसी छात्र की पढ़ाई में गरीबी रुकावट बन जाती है, तो कुछ छात्रों को मुश्किल से भोजन मिल पाता है, ऐसे में ये शिक्षिकाएं स्कूल की चारदीवारी में पढ़ाने तक सीमित नहीं, बल्कि छात्रों को शिक्षा से जोड़ने के लिए उनकी परेशानी को कम करने का काम किया।
इन शिक्षिकाओं के असल जीवन की कहानी सच में सम्मान के लायक है। आइए जानते हैं देश की ऐसी ही महिला शिक्षिकाओं के बारे में जो पढ़ाई के क्षेत्र में अहम योगदान दे रही हैं।
गीतिका जोशी
नैनीताल में खंड शिक्षा अधिकारी और प्राचार्य पद पर कार्यरत गीतिका जोशी लगभग 10 वर्षों से अध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं। 2014 में गीतिका का उत्तराखंड पीसीएस की परीक्षा में चयन हुआ। शिक्षा विभाग में उप शिक्षा अधिकारी पद पर नियुक्ति मिला। इस दौरान उन्होंने बहुत से बच्चों को अत्यंत विषम परिस्थितियों से गुजरते देखा।
कक्षा 9 की एक छात्रा जिसके पिता बग्गी चलाकर घर संभालते थे, रीढ़ की हड्डी में चोट लगने के कारण बिस्तर पर पड़ गए और घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया। उसके घर में एक समय का खाना भी नहीं बन पाता था। छात्रा के अन्य तीन भाई बहन स्कूल के मिड डे मील में खाना खाते थे लेकिन 9वीं कक्षा में होने के कारण उसे खाना नहीं मिलता था।
शिक्षिका गीतिका ने छात्रा के लिए घर से टिफिन लाना शुरू किया। बच्ची की स्कूल की फीस देना शुरू की। इससे छात्रा की पढ़ाई में भी प्रोग्रेस आई। हाई स्कूल और इंटर में वही छात्रा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर आज आत्मनिर्भर हो गई है। बच्चों के लिए ही नहीं, सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की जर्जर परिस्थितियों को ठंड और बारिश से बचाने के प्रयास में भी उन्होंने स्कूल रूपांतरण कार्यक्रम शुरू किया।
सीमा भारती झा
दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर सीमा भारती झा ने 2015 से शिक्षक के तौर पर पढ़ाना शुरू किया। एक बार कॉलेज के दो बच्चे उनके पास गए और बताया कि यहां रहने, खाने पीने और पढ़ाई का खर्च उठाने में उन्हें काफी परेशानी होती है। प्रोफेसर सीमा को चिंता हुई कि अगर उनकी मदद न की गई तो वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाएंगे। ऐसे में सीमा ने उन बच्चों का कोर्स पूरा होने तक पढ़ाई का खर्च उठाया।
इसके बाद उन्हें महसूस हुआ कि ऐसे कई बच्चे हैं जो इसी स्थिति से परेशान हैं। प्रोफेसर सीमा ने अपने साथ कुछ अन्य लोगों को जोड़ा जो आर्थिक तौर पर कमजोर छात्रों की मदद कर सकें।
शिप्रा गोम्बर
दिल्ली के ही एक स्कूल की शिक्षिका शिप्रा गोम्बर पहले सोनीपत में शिक्षण कार्य में थीं। उनके विद्यालय की 12वी कक्षा की एक छात्रा के परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी। ऐसे में उसकी पढ़ाई सुचारू रूप से आगे चलने में परेशानी आ रही थी। शिप्रा मैम ने छात्रा की फीस भरी ताकि उसकी पढ़ाई में कोई रुकावट न आए। 12वीं के बोर्ड परीक्षा परिणाम में छात्रा अर्थशास्त्र में शत प्रतिशत अंकों से पास हुई थी। नतीजा ये हुआ कि उसका दाखिला दिल्ली विवि के इकोनॉमिक्स ऑनर्स कोर्स में हुआ।