हां, ‘मुगल ए आजम’ पर बनी ‘मैंने प्यार किया’, सुमन में उस लड़की की छवि जिसे मैं चाहता था

हाल ही में घोषित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में फिल्म ‘ऊंचाई’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार सूरज बड़जात्या को मिला है। स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन के कार्यक्रम ‘वार्तालाप’ में इस बार सूरज की बारी रही और इस दौरान उन्होंने अपनी फिल्मों की मेकिंग के दिलचस्प किस्से सुनाए। उन्हीं की जुबानी पढ़िए ये किस्सा उनकी पहली फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ की मेकिंग का…

‘मैंने प्यार किया’ हमारी आखिरी फिल्म होती
राजश्री की कई फिल्में चली नहीं थीं उन दिनों, तो ये था कि ‘मैंने प्यार किया’ बनेगी और अगर नहीं चलेगी तो ये आखिरी फिल्म होगी हमारी। पिताजी (राजकुमार बड़जात्या) ने कहा कि पहली पिक्चर है ये तुम्हारी तो ‘बी सेफ’। आप यकीन नहीं करेंगे कि उन्होंने मुझे लिखकर दिया एक टेम्पलेट कि ‘मुगले आजम’ बनाना है। एक अकबर होगा। एक सलीम होगा। एक अनारकली बाहर से आएगी। मोहब्बत होगी और फिर सलीम जाएगा। मैंने कहा ये तो बन चुका है। मैं क्या बनाऊं? उन्होंने कहा कि यही बनेगा लेकिन तुम अपने हिसाब से बनाओ। लेखक के बारे में पूछा तो निर्देश मिला कि तुम लिखो। मैंने कहा, मैंने कभी ऐसे नहीं लिखा। उन्होंने सीधे कहा, मुझे ऐसे वाला चाहिए ही नहीं।

मैं लिखता गया, फिल्म बनती गई

‘मैंने प्यार किया’ (1989) का हीरो 21 साल का है। मैं तब 21 का होने वाला था। पिताजी ने कहा कि जो जिंदगी तुमने जी है, वो लिखो। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने पहला सीन वह लिखा जहां सुमन को प्रेम के घर से निकाला जाता है और उसके पिता आ जाते हैं। ये कुछ ऐसा था कि अकबर अपने महल से अनारकली को निकल जाने को कह रहे हैं और उनके पिता आ जाएं। सुमन के पिता तब कहते हैं, आपका घर अगर फाइव स्टार होटल है तो मैं इसमें रहने की कीमत चुकाऊंगा। मुझे फिल्म लेखन का विज्ञान भी नहीं पता था कि फर्स्ट एक्ट क्या होता है, सेकंड एक्ट क्या होता है, थर्ड एक्ट क्या होता है। मैं लिखता और मेरे पिताजी अलग करते जाते कि ये थर्ड एक्ट में जाएगा, ये फर्स्ट एक्ट में जाएगा, ये सेकंड में..वगैरह वगैरह।

 

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