शारदीय नवरात्रि मे करे माता के सभी नौ स्वरूपों की आराधना, पाएं आशीर्वाद

आपको बता दें वर्ष 2021 की शारदीय नवरात्रि प्रारम्भ हो चुकी है। आगामी नौ दिनों तक भक्तों में जबरदस्त उत्साह एवं हलचल रहेगी। कुछ लोग पूरे नौ दिन व्रत रखते हैं एवं भक्तिभाव से माता को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। मान्यता है कि इन नौ दिनों पर माता का वास धरती पर होता है।

नौ दिनों तक माता के सभी नौ स्वरूपों की आराधना होती है। माता की कृपा जब भक्तों ओर बरसती है तो भक्तों के सारे संकट अपने आप दूर हो जाते हैं। इसी क्रम में नवरात्रि के चौथे दिन माता के कुष्मांडा देवी स्वरूप की आराधना की जाती है। माना जाता है कि कुष्मांडा माता ने ही अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी इसलिए माता को आदिशक्ति कहा जाता है।

माता का यह स्वरूप अष्टभुजाओं का है एवं हांथों में धनुष, बाण, चक्र, गदा, कलश, कमल का फूल, कमंडल, जप माला विराजमान है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में स्थित तेज माता का है, सभी दिशाओं में तेज व्याप्त है। कुष्मांडा माता की सहृदय भक्ति करने वाले लोगों को उच्च पदों की प्राप्ति होती है।

माता अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होती है बस आपकी भक्ति सच्चे हृदय से होनी चाहिए। माता का वास सूर्यलोक में है, जहां वास करने की क्षमता सिर्फ माता कुष्मांडा देवी में है। माता की मुस्कान हमें प्रेरित करती है कि समय एवं परिस्थिति जैसी भी क्यों न हो समस्याओं को समझकर हंसते हुए उसका हल ढूंढना चाहिए और सफलता की ओर बढ़ना चाहिए। माता कुष्मांडा देवी का वाहन सिंह है। आइये जानते हैं क्या है माता के इस रूप का महत्व-

माता की आराधना से भक्तों को सिद्धि की प्राप्ति होती है। व्यक्ति नीरोग एवं स्वस्थ रहता है एवं आयु में वृद्धि होती है। सहृदय माता की आराधना करनी चाहिए माता कुष्मांडा ऐसी देवी हैं जो कम समय में ही भक्तों को आशीर्वाद दे देती हैं। नवरात्रि के चौथे दिन प्रसाद के रूप में मालपुए, हरे फलों का भोग लगाना चाहिए।

इससे बुद्धि का विकास होता है एवं आर्थिक एवं मानसिक संतुष्टि होती है। माता कुष्मांडा को कुम्हड़ा बेहद प्रिय है, ये कुष्मांडा शब्द का ही संस्कृत स्वरूप है। माता के पूजन के समय हरे रंग के वस्त्र धारण करें एवं पूजन के समय माता को कुम्हड़ा, इलायची, सौंफ का भोग लगाएं। इसके बाद माता के मंत्र ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः का 108 बार जाप करें एवं सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।

इस प्रकार विधिवत पूजन से माता प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देती है। जब भक्त माता की आराधना प्रारम्भ करते हैं भक्ति मार्ग पर बढ़ते हैं तो अल्पसमय के पश्चात माता का आशीर्वाद प्राप्त होने लगता है। माता की आराधना से भक्तों की भवर में अटकी नैया पर लग जाती है। माता की उपासना बड़े से बड़े संकट को दूर कर देती है और व्यक्ति को सफलता की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। लोक परलोक में स्वयं की उन्नति के लिए सदैव माता की भक्ति में लीन रहना चाहिए। नवरात्रि के सभी दिनों में भक्तों की भक्ति देखने योग्य होती है कोई सारे व्रत रखकर माता को प्रसन्न करता है तो कोई धूमधाम से मूर्ति की स्थापना करता है और दिन रात माता की भक्ति में लीन रहता है। सभी नियमों का पालन करता है, यह आवश्यक है कि जितनी भी हम भक्ति करें, दिल से करें, नियमानुसार करें जिससे माता का आशीर्वाद प्राप्त हो सके।

इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पूजन के पश्चात माता को मालपुए का भोग अवश्य लगाएं ये माता को बेहद प्रिय हैं। पूजन में सप्तशती, उपासना मन्त्र, कवच फिर अंत में आरती कर भोग लगाएं। पूजन के पश्चात माता से क्षमा जरूर मांगे जिससे कोई त्रुटि हुई हो तो माता माफ कर के भक्तों पर कृपा बरसायें

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