मकर संक्रांति पर क्यों खाते हैं खिचड़ी, जानें क्या है महत्व

हर त्योहार की अपनी एक खासियत है। ठीक उसी तरह मकर संक्रांति का त्योहार की भी अपनी खासियत है। अलग-अलग नाम से पूरे भारत देश में मनाया जाने वाला ये त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

साल का ये पहला त्योहार अपने साथ कई महत्व को लेकर आता है। मकर संक्रांति के त्योहार को फसलों और किसानों के त्योहार के नाम से जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिए भगवान को धन्यवाद देकर उनकी दया भाव को सदैव लोगों पर बनाए रखने का आशीर्वाद मांगते हैं।

इस दिन हर घर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिनमें से सबसे खास खिचड़ी है। इसका भी अपना महत्व है। इस दिन कई लोग गंगा नहाने के साथ ही दाल, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, सोना, ऊनी कपड़े, कम्बल जैसी चीजों को दान में देते हैं। इसी के साथ खुद भी खिचड़ी खाते हैं। जानते हैं इसके पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व के बारे में-

खिचड़ी किसी भी घर में पकाए जाने वाले सबसे नॉर्मल डिश में से एक है। बहुत कम मसालों के साथ चावल और दाल मिलाकर इसे बनाया जाता है। इसे आसानी से एक ही बर्तन में बनाया जा सकता है। इस प्रकार, मकर संक्रांति के त्योहार के दौरान खिचड़ी खाने की परंपरा है।

इस त्योहार को कई जगहों पर ‘खिचड़ी’ के नाम से जानते हैं, जो उत्तर प्रदेश राज्य से उत्पन्न हुआ है। चावल और दाल से बनी मुख्य खिचड़ी वास्तव में हिंदू भगवान गोरखनाथ का पसंदीदा खाना माना जाता है, जिनकी मूर्ति गोरखंथ के एक मंदिर में स्थापित है।

मकर संक्रांति के दिन देवता को खिचड़ी का भोग परोसा जाता है। इस दिन भक्त मंदिर में आते हैं और भगवान को चावल, दाल और हल्दी चढ़ाते हैं और एक समृद्ध फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। खिचड़ी को तब मंदिर में मौजूद सभी भक्तों को ‘प्रसाद’ या भगवान के आशीर्वाद के रूप में परोसा जाता है।

खिचड़ी को एक ही बर्तन में पकाया जाता है, ऐसे में यह एकता का प्रतीक है। इसके अलावा, मकर संक्रांति की इस खास डिश को पकाने के लिए ताजे कटे हुए चावल और दाल का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब यह है कि यह जीवन और उत्थान की प्रक्रिया को दर्शाता है जो आगे नए फसल वर्ष की शुरुआत का संकेत देता है।

 

Related Articles

Back to top button