धार्मिक नारे लगाना अपराध कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने पूछा सवाल

नई दिल्ली;  सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सवाल उठाया कि ‘जय श्रीम राम’ का नारा लगाना अपराध कैसे हो सकता है। जस्टिस पंकज मिठल और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने मस्जिद के भीतर कथित तौर पर जय श्री राम के नारे लगाने वाले दो व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई को रद्द कर दिया था।

शीर्ष कोर्ट में याचिका हैदर अली सी.एम. की ओर से दायर की गई थी। बेंच ने टिप्पणी की, वह लोग एक खास धार्मिक नारा या नाम चिल्ला रहे थे। यह अपराध कैसे हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पूछा कि जिन लोगों ने मस्जिद के अंदर जाकर नारे लगाए, उन्हें कैसे पहचाना गया? याचिका में कर्नाटक हाईकोर्ट के 13 सितंबर के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें दो आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था।

शीर्ष कोर्ट ने पूछा- आपने आरोपियों की पहचान कैसे की?
बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील देवदत्त कामत से पूछा, आपने इन लोगों की पहचान कैसे की? आप कह रहे हैं कि ये सब सीसीटीवी में दिख रहे हैं। क्या उन लोगों की पहचान की गई है, जिन्होंने मस्जिद में प्रवेश किया? कामत ने कहा, हाईकोर्ट ने कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जबकि मामले की जांच अधूरी थी। इस पर बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह देखा कि आरोप आईपीसी की धारा 503 (आपराधिक धमकी) या धारा 447 (अवैध प्रवेश) के तत्वों को पूरा नहीं करते थे।

जनवरी 2025 में होगी मामले की सुनवाई
जब बेंच ने पूछा कि क्या आप उन व्यक्तियों को पहचान पाए हैं, जिन्होंने मस्जिद में प्रवेश किया? तो कामत ने कहा कि राज्य की पुलिस ही इसका जवाब दे सकती है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी 2025 के लिए तय कर दी।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यह समझ से बाहर है कि अगर कोई जय श्रीराम चिल्लाता है तो यह किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को कैसे ठेस पहुंचा सकता है। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि शिकायत में यह आरोप नहीं था कि इस घटना से सार्वजनिक अशांति या किसी प्रकार का विवाद हुआ हो।

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