बर्लिन में हैं पीएम मोदी , जर्मनी से होगी नए रिश्तों की शुरुआत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बर्लिन में हैं। वही शहर, वही होटल, कमरे की खिड़कियों से दिखता वही पूरब पश्चिम विभाजन का प्रतीक ब्रांडेनबुर्ग गेट। लेकिन इस बार प्राथमिकताएं अलग हैं, मोदी के सामने चुनौतियां अलग हैं।
भारत का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पहली बार 2014 में जर्मनी गए थे, उस समय वह नए थे और जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल विश्व मंच पर स्थापित राजनेता। पारस्परिक संबंधों के हिसाब से जर्मनी भारत का महत्वपूर्ण साझेदार है, इस लिहाज से यह यात्रा महत्वपूर्ण थी। भारतीय प्रधानमंत्री को ब्राजील भी जाना था और वह वहां जाते हुए इस बार फ्रैंकफर्ट के बदले बर्लिन में रुके ताकि जर्मन चांसलर से मिल सकें।
लेकिन इस दौरे पर अंगेला मर्केल से नरेंद्र मोदी की मुलाकात नहीं हुई, लेकिन ब्रांडेनबुर्ग गेट ने उन्हें पूरब और पश्चिम के बंटवारे का अहसास जरूर कराया। कभी जो दीवार पूर्वी और पश्चिमी यूरोप को अलग करती थी, उसके नीचे से पैदल गुजरना प्रधानमंत्री के लिए एक नई आजाद दुनिया का अहसास था। वह भारत को भी इसका हिस्सा बनाना चाहते थे।
ब्राजील में हो रहे फुटबॉल विश्वकप ने प्रधानमंत्री की यात्रा की तैयारी करने वाले अधिकारियों की मंशा और लक्ष्यों पर पानी फेर दिया था। इस यात्रा पर जिस दिन मोदी बर्लिन पहुंचे, उसके एक दिन पहले चांसलर मैर्केल ब्राजील के लिए निकल गईं, जहां उनके देश की टीम मेजबान ब्राजील की टीम को हराकर विश्वकप के फाइनल में पहुंच गई थी।
जर्मनी का मुकाबला लैटिन अमेरिका के ही अर्जेंटीना की टीम से था, जो फुटबॉल के देवता मैराडोना की वजह से जाना जाता है। फुटबॉल की जगह जर्मनी में लगभग वही है जो भारत में क्रिकेट की है।
आम राजनीतिज्ञ भले ही फुटबॉल की राजनीति से दूर रहते हों, लेकिन संसद और विधानसभा हो या स्थानीय निकाय, किसी भी चुनाव क्षेत्र की राजनीति की कल्पना फुटबॉल राजनीति के बिना नहीं की जा सकती। फिर चांसलर राष्ट्रीय टीम के गौरव में भागीदार होने की कोशिश क्यों न करतीं? तो नरेंद्र मोदी बर्लिन में थे और बर्लिन में रहने वाली अंगेला मर्केल ब्राजील में। जब तक मोदी ब्राजील पहुंचते, मर्केल वापस बर्लिन लौट आई थीं।
इस दौरे की तैयारियों ने यह भी दिखाया कि भारतीय अधिकारी विदेशी संवेदनाओं पर कितना कम ध्यान देते हैं। ब्राजील के राष्ट्रपति ने भारतीय प्रधानमंत्री को भी फाइनल मैच देखने के लिए न्यौता भी दिया था, लेकिन वहां डिल्मा रूशेफ के अलावा मर्केल और ब्लादिमीर पुतिन भी मौजूद थे, लेकिन मोदी नहीं पहुंच पाए।फुटबॉल की दुनिया के महत्वपूर्ण देशों के लिए फाइनल तक पहुंचना बड़े सम्मान की बात होती है।
हालांकि ब्राजील सेमीफाइनल में जर्मनी से बुरी तरह हार गया, लेकिन उम्मीदें तो जीत की ही थीं। नरेंद्र मोदी ने विश्व कप के बाद हुई ब्रिक्स देशों की बैठक में भाग लिया, जो साझा हितों के अभाव में और भारत चीन विवादों के बाद बस एक क्लब जैसा होकर रह गया है।
जर्मनी के साथ दोस्ती बढ़ाने की कोशिश शुरुआत भले ही मनचाही न रही हो, लेकिन अंगेला मैर्केल ने मनमोहन सिंह के दिनों में बने संबंधों को नरेंद्र मोदी के साथ भी जोड़ने की कोशिश की। मोदी अगले साल फिर जर्मनी आए। हनोवर के मशहूर व्यापार मेले में भारत सहयोगी देश था। बड़े पैमाने पर भारत की आर्थिक संभावनाओं को पेश किया गया और सहयोग की नई संभावनाएं तलाशी गईं।
प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट के लिए दोनों ही देशों के कारोबारियों और अधिकारियों में जबरदस्त उत्साह दिखा। आखिर दोनों देशों को एक दूसरे की जरूरत भी है, वे एक दूसरे के पूरक भी हैं। जर्मनी को जिन चीजों की जरूरत है, वह भारत दे सकता है और भारत को अपने तेज विकास के लिए जो चाहिए, वह जर्मनी दे सकता है।