‘अगर निकाहनामे की शर्तें अस्पष्ट तो विवाद की स्थिति में पत्नी को मिलेगा लाभ’, सुप्रीम कोर्ट का आदेश
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिन एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि निकाहनामे में लिखे गए नियम-शर्तों में किसी भी तरह की अस्पष्टता के मामले में यदि कोई विवाद होता है तो महिला को लाभ दिया जाएगा। इसमें वे शर्तें भी शामिल होंगी, जिन पर निकाह के समय सहमति बनी होगी। फैसला जस्टिस अमीनुद्दीन खान और न्यायमूर्ति अतहर मिनुल्लाह की दो सदस्यीय पीठ ने मंगलवार को एक दंपती के तलाक से संबंधित याचिका पर सुनाया। अपील पर 10 पन्नों का विस्तृत फैसला जारी किया गया।
जानकारी के अनुसार, तलाक के बाद एक महिला ने निकाहनामे में निर्धारित शर्तों के तहत दहेज और अन्य वस्तुओं को वापस मांगा। इसके लिए महिला ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। निकाहनामा एक इस्लामी निकाह अनुबंध होता है, जिस पर निहाह के समय दोनों पक्ष (शौहर-बेगम) हस्ताक्षर करते हैं। मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा तो महिला को निकाहनामे के कॉलम नंबर 17 में दर्ज जमीन का एक हिस्सा दे दिया गया।
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ता ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता ने कहा कि जमीन का मकसद यह था कि वहां एक घर बनाया जाएगा और जब तक निकाह टिकता है, महिला वहां रह सकती है। हालांकि, निकाहनामे में ऐसा कुछ साफ शब्दों में नहीं लिखा गया। मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने कानूनी सवाल यह था कि अगर निकाहनामे के नियमों और शर्तों में कोई अस्पष्टता थी, तो इसे कैसे हल किया जा सकता था?
कोर्ट ने कहा कि यह एक पहले से तय कानून है कि अनुबंध में किसी भी तरह का संदेह पक्षों के इरादों से तय होती है। हालांकि, इस मामले में फैसले में कहा गया कि निकाहनामे के नियमों और शर्तों की व्याख्या करने से पहले यह भी विचार किया जाना चाहिए कि क्या दुल्हन को शादी के नियमों और शर्तों पर अपनी सहमति देने की पूरी स्वतंत्रता थी।