चीन ने एक बार फिर से भारत के खिलाफ शुरू किया ये काम, बिगड़ सकते हालात
चीन ने एक बार फिर से भारत की जमीन हड़पने वाली सलामी स्लाइसिंग रणनीति शुरू कर दी है। चीन के साथ जारी सीमा विवाद के बीच पारंपरिक चरागाह भूमि में चराई पर भारतीय सेना के प्रतिबंधों ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा ‘सलामी स्लाइसिंग’ के लिए अहम इलाकों को छोड़ दिया है और पशुपालन को प्रभावित किया है, जो खानाबदोश निवासियों की एकमात्र आजीविका है।
इंडियन आर्मी के इस बैन से चीन को सलामी स्लाइसिंग रणनीति को क्रियान्वित करने के लिए खुला मैदान मिल गया है। चीन ने अपने खानाबदशों के लिए इन इलाकों को खोल रखा है। ये चीनी खानाबदोश पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी की आंखों के रूप में काम करते हैं। यानी इनके जरिए ही चीन भारत की जमीन पर कब्जा जमाता है। भारत ने एक ओर जहां अपने खानाबदोशों पर पाबंदी लगा रखी है, वहीं चीन ने उसे पूरी छेट दे रखी है।
चुशुल निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले एलएएचडीसी के पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने 18 नवंबर को इलाके के दौरे के दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को एक ज्ञापन में कहा था, ‘चीन ने अपने खानाबदोशों को आजादी से घूमने की स्वतंत्रा दी है। वे अक्सर अपने खानाबदोश समुदाय का इस्तेमाल हमारी जमीन पर कदम-दर-कदम अतिक्रमण करने के लिए करते हैं।’
अलग से पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने टीओआई को बताया कि भारतीय सेना द्वारा भारतीय खानाबदोशों को अपने पशुओं को हॉट स्प्रिंग, फिंगर्स (पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट और दक्षिणी तट पर) से लेकर न्यालुंग योकमा और न्यालुंग गोंगमा तक फैले पारंपरिक चरागाह पर अपने पशुओं को चराने से प्रतिबंधित किया गया है। इन इलाकों को सेना कैलाश रेंज, रेचिन ला, रेजांग ला, ब्लैक टॉप, गुरुंग हिल और फुरतसुर कार्पो के रूप में पेश करती है।
सरकार का अनुमान है कि चांगथांग इलाके में पशुधन (पशुओं) की संख्या 79,250 है, जिसके लिए सर्दियों के दौरान 30 दिनों के लिए 4,775 क्विंटल चारे की आवश्यकता होती है। स्टैनजिन ने कहा कि गर्मियों में, चरवाहे अपने झुंड को अंतर्देशीय घास के मैदानों और घाटियों में ले जाते हैं। लेकिन सर्दियों में एलएसी से लगे चरागाहों में विशिष्ट घास होती है, जिसे भेड़, बकरी और याक बर्फ के नीचे से सूंघ लेते हैं।
उन्होंने मार्सिमिक ला के उत्तर में थरसांग घाटी में चीनी याक के चरने की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे मौसम में चीनी पशु भेजते हैं और फिर हमारी भूमि पर दावा करने के लिए तंबू लगाने के लिए चरवाहों के रूप में सैनिकों को सादे कपड़ों में भेजते हैं।
ये पारंपरिक चराई क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं और हमारे खानाबदोशों को पशुओं के साथ वहां जाने दिया जाना चाहिए ताकि वे किसी भी चीनी दुस्साहस का पता लगा सकें। बता दें कि 2020 के गलवान घाटी झड़प के बाद डिएस्क्लेशन प्रक्रिया के दौरान इंडियन आर्मी ने इन इलाकों में चरवाही पर प्रतिबंध लगाए थे।
दरअसल, सलामी स्लाइसिंग चीन का बहुत पुराना हथियार रहा है, जिसकी मदद से उसने अपने साम्राज्य का विस्तार किया है। चीन ने इस रणनीति के तहत भारतीय जमीन पर कब्जा किया है और अपना होने का दावा करता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो सलामी स्लाइसिंग वह रणनीति है, जिसमें कोई भी देश अपने पड़ोसी देशों के खिलाफ छोटे-छोटे सैन्य ऑपरेशन से अथवा धीरे-धीरे पैर पसारकर उस इलाके पर अपना कब्जा जमाना शुरू करता है। इस प्रक्रिया में कोई भी देश पड़ोसी देश को बारी-बारी से झटका देता है। चीन ने 1962 में इसी सलामी स्लाइसिंग रणनीति का इस्तेमाल किया था।