आप भी तो नहीं हैं मोटिवटॉक्सिकेशन का शिकार? इस साल खोजे गए इस शब्द के हैं व्यापक मायने

सोशल मीडिया और रील्स की दुनिया आपको भी अपनी गिरफ्त में ले चुकी हो तो कोई बड़े ताज्जुब की बात नहीं है। गिरफ्त शब्द का इस्तेमाल इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर दुनियाभर के विशेषज्ञ लगातार चिंता जताते रहे हैं। चिंता इस बात की भी है कि इसपर सहजता से उपलब्ध कंटेंट को देखते रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक पाया गया है।

इसी संबंध में इसी संबंध में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने साल 2024 के लिए ‘ब्रेन रोट’ शब्द को ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ घोषित किया। ब्रेन रोट शब्द सोशल मीडिया पर अत्यधिक मात्रा में मौजूद दोयम दर्जे वाले कंटेट के कारण होने वाले मानसिक दुष्प्रभावों को लेकर चिंता को दर्शाता है।

सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल रील्स और कंटेट की भी भरमार है। कहीं ये रील्स आपको ‘प्रेरणामद’ तो नहीं बना रहे हैं? ब्रेन रोट की ही तरह ‘प्रेरणामद’ या मोटिवटॉक्सिकेशन (Motivetoxication) भी इस साल का सबसे चर्चित शब्द है जिसके सोशल मीडिया और इसके मानसिक स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्प्रभावों के व्यापक मायने हैं। क्या होता है मोटिवटॉक्सिकेशन और क्या है इसका मतलब, आइए विस्तार से समझते हैं।

मोटिवटॉक्सिकेशन या प्रेरणामद

‘प्रेरणामद’ या मोटिवटॉक्सिकेशन शब्द की खोज भोपाल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी ने की है। यह दो शब्दों “प्रेरणा” और “मद” (नशा) से बना है। इसका अर्थ है– मोटिवेशनल रील्स और कंटेंट का ऐसा नशा, जो आपको प्रेरणा का झूठा अहसास देता है, लेकिन असल जिंदगी में कोई बदलाव नहीं लाता। युवा आबादी इसकी सबसे ज्यादा चपेट में है।

सोशल मीडिया पर मोटिवेशनल रील्स की बाढ़ सी है। सुबह उठते ही लोग रील्स देखने लगते हैं और सोने से पहले भी वही करते हैं। खुद को प्रेरित करने के चक्कर में वे अनजाने में प्रेरणामद का शिकार हो जाते हैं।

मोटिवेशनल रील्स और कंटेंट का नशा

डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं, प्रेरणामद होना मोटिवेशनल रील्स और कंटेंट का नशा है। मोटिवेशनल रील्स देखकर आपको कुछ पलों के लिए ऐसा लगता है जैसे जीवन में प्रेरणा जग गई हो, खुशियां आ गई हों लेकिन असल जिंदगी में ये कोई बदलाव नहीं लाता।

क्या आपने कभी महसूस किया है कि आप दिन के 2-3 घंटे सिर्फ रील्स देखने में बर्बाद कर देते हैं? आप सोचते हैं, “बस थोड़ी देर और…” और फिर देखते ही देखते 1-2 घंटे गुजर जाते हैं। इस आदत का असर आपकी कार्य क्षमता, मानसिक शांति और फैसले लेने की क्षमता पर पड़ता है। जो समय आपको काम करने में लगाना चाहिए था, वह सिर्फ रील्स देखने में चला जाता है। आपको लगता है कि आपने बहुत कुछ सीख लिया है, जबकि असल में कुछ भी नहीं बदला।

ब्रेन रोट और मोटिवटॉक्सिकेशन कितना अलग है?

डॉक्टर सत्यकांत बताते हैं, मोटिवेशनल रील्स या वीडियो देखने से कुछ पलों के लिए मस्तिष्क में कैमिकल मैसेंजर “डोपामाइन” रिलीज होता है, जो आपको खुशी और ताजगी का अहसास कराता है। हालांकि इसके परिणाम दीर्घकालिक नहीं होते हैं। यही है प्रेरणामद का चक्र, जिसमें लाखों लोग फंसे हुए हैं।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ब्रेन रोट और मोटिवटॉक्सिकेशन दोनों ही शब्दों को मायने व्यापक हैं, जिसपर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। विशेषज्ञों ने ब्रेन रोट शब्द को किसी व्यक्ति की मानसिक या बौद्धिक स्थिति में गिरावट के रूप में परिभाषित किया है, विशेष रूप से लो लेवल के ऑनलाइन कंटेंट के अत्यधिक उपभोग के कारण होने वाली गिरावट। वहीं मोटिवटॉक्सिकेशन, रील्स और वीडियो के माध्यम से खुद को काल्पनिक रूप से प्रेरित महसूस करना है।

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