फिर गरमाया कावेरी जल विवाद, CM ने बुलाई सर्वदलीय बैठक, बोले- किसानों से धोखा बर्दाश्त नहीं करेंगे
चेन्नई: कावेरी जल विवाद फिर से गरमा गया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कावेरी जल विवाद को लेकर कर्नाटक सरकार के रुख की आलोचना की। उन्होंने अंतर-राज्यीय नदी विवाद को लेकर आगामी 16 जुलाई को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। स्टालिन ने कहा कि 15 जुलाई 2024 तक कर्नाटक के चार मुख्य बांधों में कुल भंडारण 75.586 टीएमसी फीट है, जबकि तमिलनाडु के मेट्टूर जलाशय में जल का स्तर मात्र 13.808 टीएमसी फीट है।
‘तमिलनाडु के किसानों से धोखा बर्दाश्त नहीं करेगा राज्य’
मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार इस बार पर्याप्त बारिश की गुंजाइश है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि ‘कर्नाटक द्वारा कावेरी जल नियमन समिति के निर्देशों के अनुसार पानी छोड़ने से इनकार करना, तमिलनाडु के किसानों के साथ धोखा है और राज्य कभी भी इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।’ रविवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था कि राज्य सरकार तमिलनाडु के लिए कावेरी नदी से हर रोज आठ हजार क्यूसेक पानी छोड़ने के लिए तैयार है। बता दें कि कावेरी जल नियमन समिति ने कर्नाटक सरकार को इस महीने के अंत तक तमिलनाडु के लिए हर रोज एक टीएमसी फीट पानी छोड़ने का निर्देश दिया था। तमिलनाडु सीएम ने कहा कि उन्होंने राज्य विधानसभा में सभी पार्टियों के विधायक दल के नेताओं की बैठक बुलाई है। उस बैठक में आगे के कदम पर चर्चा की जाएगी। बैठक 16 जुलाई को सुबह 11 बजे राज्य सचिवालय में होगी।
क्या है कावेरी जल विवाद
कावेरी नदी के जल को लेकर विवाद करीब 140 साल से भी ज्यादा पुराना है। साल 1881 में कर्नाटक ने नदी पर बांध बनाने का फैसला किया, लेकिन तमिलनाडु ने इसका विरोध किया। कई साल ये विवाद चलने के बाद ब्रिटिश सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया और दोनों राज्यों के बीच एक समझौता कराया। इसके समझौते के तहत नदी के जल का 556 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को और 177 हजार मिलियन क्यूबिक पानी कर्नाटक को मिलना तय हुआ।
कावेरी नदी कर्नाटक के कोडागू जिले से निकलती है और तमिलनाडु से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। नदी का कुछ हिस्सा केरल और पुडुचेरी में भी है। साल 1972 में एक कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने 1976 में चारों राज्यों के बीच नदी के जल को लेकर एक समझौता कराया, लेकिन अभी भी नदी के जल को लेकर विवाद है। दरअसल कर्नाटक ब्रिटिश काल में हुए समझौते को तर्कसंगत नहीं मानता और तमिलनाडु उस समझौते को सही मानता है।