रूस और उत्तर कोरिया के बीच नाटो जैसा समझौता, एक देश पर हमला हुआ तो दूसरा देश तुरंत देगा सैन्य मदद
दुनिया पहले से ही तनाव के दौर से गुजर रही है। अब एक ऐसी खबर सामने आई है, जिसने संघर्ष की आशंका को और बढ़ा दिया है। दरअसल उत्तर कोरिया दौरे पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किम जोंग उन के साथ एक ऐतिहासिक समझौता किया है। इस समझौते के तहत दोनों देश युद्ध की स्थिति में एक दूसरे को तुरंत सैन्य मदद देंगे। उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने इस समझौते की पुष्टि की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच व्यापक रणनीतिक समझौते पर बुधवार को उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में आयोजित शिखर सम्मेलन में हस्ताक्षर हुए।
अमेरिका और सहयोगी देशों की बढ़ेगी चिंता
दोनों देशों के बीच हुए समझौते के अनुच्छेद 4 में प्रावधान है कि अगर एक देश पर हमला होता है या वह युद्ध की स्थिति में है तो दूसरा देश तुरंत सैन्य और अन्य मदद देगा। शीत युद्ध समाप्त होने के बाद रूस और उत्तर कोरिया के बीच हुआ यह सबसे अहम समझौता है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन ने इस समझौते को दोनों देशों के संबंधों में बेहतर बदलाव बताया, जो सुरक्षा, व्यापार, निवेश, संस्कृति और मानवीय मदद जैसे पहलुओं को कवर करेगा। रूस और उत्तर कोरिया के बीच यह समझौता ऐसे वक्त हुआ है, जब अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने यूक्रेन युद्ध में उत्तर कोरिया द्वारा रूस को हथियार और गोला बारूद उपलब्ध कराने पर गहरी चिंता जाहिर की है। अमेरिका को ये भी डर है कि रूस की आर्थिक और तकनीकी मदद से उत्तर कोरिया अपने परमाणु हथियारों और मिसाइल प्रोग्राम को तेजी से बढ़ा सकता है।
सोवियत संघ के समय भी दोनों देशों के बीच था ऐसा समझौता
उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन ने दोनों देशों के बीच हुए इस सुरक्षा समझौते को ‘अब तक की सबसे मजबूत संधि’ करार दिया। किम जोंग उन ने यूक्रेन युद्ध में रूस को पूरा समर्थन देने की बात दोहराई। वहीं पुतिन ने इस समझौते को ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि ‘इससे दोनों देशों की साझा इच्छा झलकती है और यह संबंधों को नए आयाम पर लेकर जाएगा।’ गौरतलब है कि उत्तर कोरिया और सोवियत संघ के बीच भी साल 1961 में ऐसा ही एक समझौता हुआ था, जिसके तहत एक देश पर युद्ध की स्थिति में दूसरा देश तुरंत सैन्य मदद देने वाला था। हालांकि जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो यह संधि टूट गई और इसकी जगह साल 2000 में एक नया समझौता किया गया, लेकिन उस समझौते में सैन्य मदद की अनिवार्यता खत्म कर दी गई थी। अब नए समझौते में फिर से सैन्य मदद की बात है।