12 साल की कायना सबसे कम उम्र की मास्टर स्कूबा डाइवर; बोलीं- खतरों से भरे समंदर में नहीं लगता डर
बंगलूरू: स्कूबा डाइविंग जितना रोमांचक होता है उतना ही कई बार खतरनाक साबित होता है। बशर्ते आप खतरों से भरे समंदर में स्कूबा डाइविंग न कर रहे हों। हमारे देश के अलावा दुनिया के कई देशों में स्कूबा डाइविंग एक खेल के तौर पर भी खेला जाता है। वहीं बंगलूरू की रहने वाली 12 वर्षीय कायना खरे ने दावा किया है कि वो स्कूबा डाइविंग में मास्टर हैं। अपने स्कूबा डाइविंग करियर के बारें में बताते हुए कायना खरे ने बताया कि वो जब 10 साल की थी। तब उन्होंने स्कूबा डाइविंग की शुरुआत की थी। और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर पहला स्कूबा डाइव किया और वो उनके लिए एक मजेदार अनुभव था।
थाइलैंड में किया एडवांस ओपन वाटर कोर्स
कायना खरे ने आगे बताया कि उन्होंने अपना पहला ओपन वाटर स्कूबा डाइविंग कोर्स इंडोनेशिया के बाली में किया और फिर थाइलैंड में एडवांस ओपन वाटर कोर्स किया। कायना खरे के मुताबिक वो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर आधिकारिक तौर पर स्कूबा डाइविंग में मास्टर बन गई। कायना का कहना है कि पानी के नीचे रहना मेरे लिए बहुत शांत और आरामदायक है। वहीं उनके माता-पिता ने उनके स्कूबा डाइविंग के रोमांचक करियर में उनका बहुत साथ दिया है।
‘समंदर में खतरों के बावजूद नहीं लगता डर’
अपने करियर पर बात करते हुए कायना खरे बताती हैं कि उन्होंने तैराकी और स्कूबा डाइविंग में कुछ पुरस्कार भी जीते हैं और वो स्कूबा डाइविंग को एक मजेदार खेल मानती हैं। कायना के अनुसार समंदर में तमाम खतरों के बावजूद भी उनको बिल्कुल भी डर नहीं लगता है। उन्होंने मालदीव, बाली, थाईलैंड के अलावा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भी स्कूबा डाइविंग की है।
विश्व रिकॉर्ड तोड़कर बनीं मास्टर डाइवर
12 वर्षीय कायना खरे बताती हैं कि उन्होंने दुनिया की सबसे कम उम्र की मास्टर डाइवर बनकर विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया है। वहीं अपने पंसदीदा विषय के बारे में कायना ने कहा कि वो समुद्री विज्ञान में अपना करियर आगे बढ़ाना चाहती हैं, क्योंकि उन्हें समंदर से बहुत लगाव है। बता दें कि समंदर और समुद्री जीवन को समझने और देखने में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए स्कूबा डाइविंग से शानदार और सुविधाजनक और कोई तरीका नहीं है।
क्या होती है स्कूबा डाइविंग?
स्कूबा डाइविंग के बारे में बात करें तो पानी के नीचे डाइविंग करने का एक खास तरीका है। इस डाइविंग के दौरान गोताखोर पानी के अंदर जाकर टैंक की मदद से सांस लेता है। स्कूबा डाइवर्स पानी में अपने साथ ऑक्सीजन गैस लेकर लेकर जाते हैं, जिससे उन्हें सांस लेने में दिक्कत न आए और वो ज्यादा देर तक पानी में रह सकें। भारत में कई जगहों पर स्कूबा डाइविंग की जाती है। इसमें, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, कर्नाटक का तरानी द्वीप या पिजन आइलैंड और गोवा का ग्रैंड आइलैंड शामिल है।