यूनिसेफ की रिपोर्ट- रिहायशी इलाकों में विस्फोटक हथियारों का हो रहा इस्तेमाल, हजारों बच्चे हताहत
यूनीसेफ ने आगाह किया है कि जैसे-जैसे शहरी इलाकों में लड़ाई के मामले बढ़ रहे हैं, खुले रणक्षेत्रों के लिए विकसित किए हथियारों का इस्तेमाल अब शहरों, नगरों व गांवों में बढ़ रहा है। आबादी वाले इलाकों में भारी हथियारों व विस्फोटकों के इस्तेमाल का, आम नागरिकों, विशेष रूप से बच्चों पर भयावह असर होता है।
वर्ष 2018 से 2022 के दौरान, विश्व भर में 24 से अधिक हिंसक टकराव से ग्रस्त इलाक़ों में, कुल साढ़े 47 हजार बच्चे हताहत हुए, जिनमें 49.8 प्रतिशत मामलों के लिए विस्फोटक हथियारों का प्रयोग जिम्मेदार था। संयुक्त राष्ट्र द्वारा सत्यापित इन मामलों में से अधिकांश मामले घनी आबादी वाले इलाकों में दर्ज किए गए।
यूनीसेफ के उप कार्यकारी निदेशक टैड चायबॉन ने स्पष्ट किया कि इन साक्ष्यों को नकारा नहीं जा सकता है। “जब रिहायशी इलाकों में विस्फोटक हथियारों का इस्तेमाल किया जाता है, तो बच्चों को गहरी पीड़ा का सामना करना पड़ता है, ना केवल शारीरिक रूप से बल्कि उनके जीवन के हर पहलू में।”
“हजारों युवा जिंदगियां या तो अचानक ख़त्म हो जाती हैं या फिर हर साल, हमेशा के लिए बदल जाती हैं।” यूनीसेफ के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, बच्चों को इससे शारीरिक चोट व अन्य ज़ख्म तो पहुंचते ही हैं, मगर उन्हें मनोवैज्ञानिक, शैक्षिक व सामाजिक प्रभावों से भी जूझना पड़ता है, जो कि जीवन-पर्यंत, पीड़ादाई अनुभव के रूप में जारी रह सकते हैं।
विस्फोटक हथियारों के इस्तेमाल के सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय असर भी हैं, जिससे बच्चों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, स्वच्छ जल व अन्य अति आवश्यक सेवाओं की सुलभता प्रभावित होती है। बुनियादी ढांचे के विध्वंस से बच्चों के विकास और सामुदायिक स्वास्थ्य पर भी दीर्घकालिक दुष्परिणाम हो सकते हैं।
रोकथाम जरूरी है
यूनीसेफ, हिंसक टकरावों से जूझ रहे इलाकों में जमीनी स्तर पर प्रयासों में जुटा है, ताकि ऐसे हथियारों से होने वाले असर को कम किया जा सके, जरूरतमंदों तक राहत पहुंचाना संभव हो और जोखिम का सामना कर रहे बच्चों को सहारा दिया जा सके। मगर, यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा कि रोकथाम की सख्त आवश्यकता है, जिसके लिए एक मजबूत, सतत अन्तरराष्ट्रीय कार्रवाई की दरकार है।