‘अन्य दृष्टिकोण की संभावना पर बरी करने का फैसला नहीं पलट सकते’; हत्या के मामले में बोली अदालत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलीय अदालत सिर्फ इस आधार पर किसी आरोपी को बरी करने का फैसला नहीं पलट सकती कि कोई अन्य दृष्टिकोण संभव है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि अपीलीय अदालत जब तक बरी करने के फैसले में कोई त्रुटि नहीं पातीं, उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं।
शीर्ष अदालत ने हत्या के एक मामले में अपील पर फैसला करते समय ये टिप्पणियां कीं, जहां निचली अदालत के बरी करने के आदेश को हाईकोर्ट ने पलट दिया था। पीठ की तरफ से फैसला लिखने वाले जस्टिस ओका ने कहा, यह एक स्थापित कानून है कि बरी किए जाने के खिलाफ अपील पर फैसला करते समय, अपीलीय अदालत को सबूतों की फिर से पड़ताल करनी होती है।
पीठ ने आगे कहा, अपीलीय अदालत को यह देखना चाहिए कि निचली अदालत का फैसला मौजूद सबूतों के आधार पर उचित है या नहीं। इस मामले में ऐसा लगता है कि हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को इस कसौटी पर नहीं परखा। गुजरात में 1996 में हुई एक हत्या मामले में निचली अदालत ने आरोपी पिता-पुत्र को बरी कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट ने पलट दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बहाल कर दिया।