अभी भी सौ वर्ष पुराने मकान में रह रहे, राम मंदिर बनने के बाद ही खुद के घर की रखेंगे ईंट

राम मंदिर आंदोलन की मुख्य धारा में रहे ढांचा विध्वंस के मुख्य आरोपी संतोष दुबे भी अब अपना आशियाना बनाएंगे। वर्ष 1986 में मंदिर का ताला खुलने पर उन्होंने प्रभु श्रीराम का मंदिर बनने तक अपना घर न बनाने का संकल्प लिया था। वह अभी भी सौ वर्ष पुराने उसी जर्जर भवन में रहते हैं, जिसके दरवाजे तक को पुलिस ने धरपकड़ के दौरान तोड़ दिया गया था।

मूलरूप से बीकापुर के पातूपुर निवासी संतोष दुबे शहर के जमुनियाबाग में स्थित पैतृक निवास में परिवार के साथ रहते हैं। 30 जनवरी 1984 को विहिप की ओर से सरयू तट पर हुई संकल्प सभा में शामिल होकर उन्होंने मंदिर निर्माण का संकल्प लिया। उस समय वह हाईस्कूल में थे। इसी समय से वह मंदिर आंदोलन से जुड़े और समय-समय पर सभी आंदोलनों का नेतृत्व किया।

दो नवंबर 1990 में कारसेवा के दौरान उन्हें चार गोलियां लगीं। छह दिसंबर 1992 को गुंबद तोड़ते समय वह नीचे गिरे और शरीर में 17 फ्रैक्चर हो गए। कई महीनों के इलाज के बाद वह स्वस्थ हुए और फिर रामकाज में जुट गए। वर्ष 2010 में वह बीकापुर तृतीय से जिला पंचायत सदस्य चुने गए। इस दौरान वह आर्थिक रूप से भी कुछ मजबूत हुए। महंगी गाड़ी ली और संसाधन पूरे किए, लेकिन घर न बनवाने का संकल्प बरकरार रखा।

बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुख्य आरोपी कारसेवक संतोष दुबे का कहना है कि 30 जनवरी 1984 को भगवान श्रीराम का मंदिर बनने तक उन्हें अपना मुंह न दिखाने का कारसेवकों के साथ संकल्प लिया था। अब वे अपने आराध्य को मुंह दिखाने लायक हो गए हैं। 30 जनवरी को जीवित बचे कारसेवकों के साथ नंगे पांव घर से निकलेंगे और रामकोट की परिक्रमा करके श्रीराम लला के दर्शन करेंगे। प्रभु श्रीराम को उनके मकान में देखना ही मेरे जीवन का उद्देश्य रहा। 40 वर्ष के इंतजार के बाद सपना साकार हो रहा है। आराध्य को उनका घर मिल रहा है। मंदिर तैयार होने के बाद हम अपना भी आशियाना बनाएंगे।

Related Articles

Back to top button