गांधी की आलोचना करते-करते जालियांवाला कांड पर दे दी थी अंग्रेज शासन को चुनौती

फिल्म केसरी चैप्टर-2 18 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। इस फिल्म में अभिनेता अक्षय कुमार ने सी. शंकरन नायर का किरदार निभाया है। यह फिल्म 2019 में आई किताब- ‘द केस दैट शूक द एंपायर: वन मैन्स फाइट फॉर ट्रूथ अबाउट द जालियांवाला बाग मैसेकर’ के आधार पर बनी है। इस किताब के लेखक शंकरन नायर के परपोते रघु पलत और उनकी पत्नी पुष्पा पलत हैं। सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सी. शंकरन नायर का जिक्र किया।

पीएम मोदी ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा, “कांग्रेस पार्टी ने एक राष्ट्रवादी को अब सिर्फ इसलिए किनारे कर दिया, क्योंकि वह उनके नैरेटिव में फिट नहीं होते। प्रधानमंत्री ने कहा कि हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के हर बच्चे को शंकरन नायर के बारे में पता होना चाहिए।”

चेत्तूर शंकरन नायर का जन्म केरल के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता मम्माइल रामुन्नी पणिकर ब्रिटिश सरकार में तहसीलदार के तौर पर काम करते थे। शंकरन नायर को उनका पारिवारिक नाम चेत्तूर मां पार्वती अम्मा चेत्तूर के खानदानी नाम से मिला था। शंकरन नायर ने आर्ट्स की डिग्री हासिल करने के बाद मद्रास लॉ कॉलेज से कानून की डिग्री ली। अपनी जबरदस्त तार्किक क्षमता और वाकपटुता के चलते वह आगामी वर्षों में एक जबरदस्त वकील, राज्य के एडवोकेट जनरल, राजनेता और बाद में जज बने।
बताया जाता है कि नायर को कानून की डिग्री मिलने के बाद उन्हें सर होराशियो शेफर्ड ने अपने चैंबर में रखा। सर शेफर्ड, जो कि बाद में मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी बने, को शंकरन नायर की प्रतिभा को निखारने के लिए जाना जाता है। हालांकि, नायर का एक कौशल उनकी कभी हार न मानने वाला और किसी के सामने न झुकने वाला भाव भी था।

1880 में उन्हें मद्रास हाईकोर्ट से शुरू हुए करियर से लेकर 1908 तक सरकार के एडवोकेट जनरल (एजी) बनने के दौर तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खुद ब्रिटिश शासन से उन्हें कई चुनौतियां मिलीं, लेकिन उनका अपनी मान्यताओं के लिए प्रतिबद्धता का लोहा ब्रिटिश शासन ने भी माना और 1912 में नायर को नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया। इसके बाद वे सर सी. शंकरन नायर नाम से जाने गए। इससे पहले 1908 में उन्हें उन्हें मद्रास हाईकोर्ट में स्थायी जज के तौर पर नियुक्ति मिली।

राजनीति में भी रहे सक्रिय, कांग्रेस से रहा लंबा जुड़ाव
नायर कानून के क्षेत्र में बड़ा नाम होने के साथ ही राजनीति में भी बराबर सक्रिय रहे। उन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई और कांग्रेस के साथ जुड़े रहे। 1897 में वे अमरावती में पार्टी के अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष भी बने। इस बैठक में उन्होंने भारत के स्वशासन की मांग को आगे रखा। 1900 में नायर मद्रास विधान परिषद के भी सदस्य बने।

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