गोरखपुर खाद कारखाने के प्रिलिंग टॉवर की ऊंचाई कुतुबमीनार से भी दोगुनी , पूरी खबर जानकर चौक जाएंगे आप

गोरखपुर खाद कारखाने के प्रिलिंग टॉवर की ऊंचाई कुतुबमीनार (73 मीटर) से भी दोगुनी है। जापानी कंपनी द्वारा तैयार टॉवर की ऊंचाई 149.5 मीटर है। इसका व्यास 28 से 29 मीटर है।आठ हजार करोड़ से अधिक लागत वाला यह कारखाना प्राकृतिक गैस से संचालित होगा, जिससे वातावरण के प्रदूषित होने का खतरा नहीं है।

पीएम नरेन्द्र मोदी आज कारखाने का लोकार्पण करेंगे और इसके साथ ही गोरखपुर खाद कारखाना रोज 12.7 लाख मीट्रिक टन नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन करने लगेगा। रोज करीब 3850 मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन होगा। इससे पहले कारखाने का सफल ट्रायल हो चुका है।

बताया जा रहा है कि दुनिया भर में जितने भी यूरिया खाद के कारखाने बने हैं, उनमें गोरखपुर खाद कारखाने का प्रिलिंग टावर सबसे ऊंचा है। टॉवर की 117 मीटर की ऊंचाई से अमोनिया गैस का लिक्विड गिराया जाएगा।

अमोनिया के लिक्विड और हवा के रिएक्शन से नीम कोटेड यूरिया बनेगी। एचयूआरएल के अधिकारियों के मुताबिक करीब 600 एकड़ में बने इस कारखाने पर 8603 करोड़ की लागत आई है। यह देश का सबसे बड़ा यूरिया प्लांट है। गोरखपुर के यूरिया प्लांट के प्रीलिंग टॉवर की ऊंचाई देश की फर्टिलाइजर कंपनियों में सर्वाधिक है। गोरखपुर से पहले सबसे ऊंचा टॉवर कोटा के चंबल फर्टिलाइजर प्लांट का था।

जो करीब 142 मीटर ऊंचा है। गोरखपुर के साथ ही सिंदरी, बरौनी, पालचर और रामगुंडम में यूरिया प्लांट का निर्माण किया जा रहा है। अन्य सभी यूरिया प्लांट के टॉवरों की ऊंचाई गोरखपुर के प्लांट से कम है।

एचयूआरएल के वरिष्ठ प्रबंधक सुबोध दीक्षित ने बताया कि गेल द्वारा बिछाई गई पाइप लाइन से आने वाली नेचुरल गैस और नाइट्रोजन के रिएक्शन से अमोनिया का लिक्विड तैयार किया जाएगा। अमोनिया के इस लिक्विड को प्रीलिंग टॉवर की 117 मीटर ऊंचाई से गिराया जाएगा। इसके लिए ऑटोमेटिक सिस्टम तैयार किया जा रहा है।

अमोनिया लिक्विड और हवा में मौजूद नाइट्रोजन के रिएक्शन से यूरिया छोटे-छोटे दाने के रूप में टॉवर के बेसमेंट में कई होल के रास्ते बाहर आएगा। यहां से यूरिया के दाने ऑटोमेटिक सिस्टम से नीम का लेप चढ़ाए जाने वाले चैंबर तक जाएंगे। नीम कोटिंग होने के बाद तैयार यूरिया की बोरे में पैकिंग होगी। यूरिया प्लांट में टॉवर की ऊंचाई हवा की औसत रफ्तार के बाद तय की जाती है। इसके लिए एचयूआरएल की टीम ने करीब महीने भर हवा की रफ्तार को लेकर सर्वे किया गया था।

Related Articles

Back to top button