रेंजर्स और पुलिस की सुरक्षा में पाकिस्तान पहुंचे 2400 भारतीय सिख, वैसाखी उत्सव में होंगे शामिल
भारत के करीब 2400 सिख तीर्थ यात्री वैशाखी के अवसर पर शनिवार को पाकिस्तान पहुंचे हैं। पाकिस्तानी पंजाब के पहले सिख मंत्री सरदार रामश सिंह अरोरा, इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) के अतिरिक्त सचिव राणा शाहिद और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने वाघा बॉर्डर पर भारतीय तीर्थयात्रियों का स्वागत किया। ईटीपीबी प्रवक्ता अमीर हाशमी ने बताया कि गुरुद्वारा पुंजा साहिब में आयोजित वैसाखी उत्सव में शामिल होने के लिए भारतीय यहां आए हैं।
हाशमी ने बताया कि भारतीय तीर्थयात्रियों को ट्रेन से हसनअब्दाल लाया गया। उन्हें पुलिस और पाकिस्तानी रेंजर्स द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई है। उन्होंने कहा कि नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग ने तीर्थयात्रियों को 2,975 वीजा जारी किए थे लेकिन यहां सिर्फ 2400 यात्री ही आए हैं। तीर्थयात्रियों के लिए पहली बार बसों के बजाय रेलवे का इस्तेमाल किया गया है। हाशमी ने बताया कि गुरुद्वारे में उत्सव का मुख्य आयोजन रविवार 14 अप्रैल को किया जाएगा। कार्यक्रम में 11,000 से अधिक स्थानीय और विदेशी सिख तीर्थयात्री पंजा साहिब पहुंचेंगे। भारत के अलावा विदेशी सिख तीर्थयात्रियों में- कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लोग शामिल हैं। सिख यात्री इस दौरान, ननकाना साहिब, गुरुद्वारा सच्चा सौदा, गुरुद्वारा दरबार साहिब, गुरुद्वारा रोरी साहिब और गुरुद्वारा डेरा साहिब भी जाएंगे। ईटीपीबी ने वैसाखी मेले के लिए सभी व्यवस्थाएं कर लीं हैं।
कैसे मनाते हैं बैसाखी ?
सिख समुदाय के लोग बैसाखी के पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस दौरान गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को दूध से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। इस दौरान हाथों की स्वच्छता का खास ध्यान रखा जाता है। इसके बाद पवित्र किताब को ताज के साथ उसके स्थान पर रखा जाता है। बाद में उसे पढ़ा जाता है। इस दौरान अनुयायी ध्यानपूर्वक गुरु का प्रवचन सुनते हैं। बैसाखी के दिन श्रद्धालुओं के लिए अमृत भी तैयार किया जाता है, जो बाद में सभी को बांटा जाता है। परंपरा के अनुसार अनुयायी एक पंक्ति में लगकर अमृत को 5 बार ग्रहण करते हैं। फिर अरदास के बाद गुरु को प्रसाद का भोग लगाकर अनुयायियों को दिया जाता है।
बैसाखी से जुड़ी पौराणिक मान्यता
सिख समुदाय के लोग बैसाखी को नए साल के रूप में मनाते हैं। इस पर्व को मनाने के पीछे की एक वजह ये है कि 13 अप्रैल 1699 को सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश होता है। इस दिन सूर्यदेव और लक्ष्मीनारायण की पूजा करना बेहद शुभ होता है। इससे सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।